Monday, September 05, 2011

it surely is painful-again

सहना इस सफ़र को बिन साथ तुम्हारे
सह ही रहा हूँ |
सहने को और अब रह क्या गया है
कहा नहीं शायद कही कुछ, कोसता हूँ
की कहने को अब और रह क्या गया है
मौसम वही है
रातें वही हैं, रातों की वो बातें वही हैं
पर इस थकान से राहत नहीं है|
दोस्ती की दस्तक में था साथ तुम्हारा
अब इस साथ में दोस्ती कहीं ग़ुम गई है|

जब चाहा की देखूं तो पाबन्दी मिली
और अब बतों में नमी खिल रही है|
यह सोच है मेरी आज़ाद उज्जवल , वो दी अगर
तो मरेगी वो ज़िन्दगी
जो यहाँ बस रही है
जो बीतें यह दस दिन
जो सोचो तुम, और आयो यहाँ कही तुम मेरे बिन
तो समझना इसे, जो घुटन है यहाँ वह दर्द की नहीं है
यह रूह है मेरी
जो रुक्सत हो गयी थी
और अब यहाँ पर सड़ रही है

पिघल रहा इस बारिश में
साक्षी हूँ में, क्यूँ कुछ करता नहीं हूँ
की यह वाक्य थे उसके
तू तो मर रहा है
आत्म हूँ तेरा में मरता नहीं हूँ

झूट था जो कहा कभी था
पर क्या झूट है अब वो जो लग रहा है
जब में हूँ वही जो लिखा था कभी
तो साया मेरा क्यूँ अब बढ रहा है
जो सोच है मेरी उज्जवल अभी
तो व्यर्थ है यह कविता
की साया मेरा मुझे दिख रहा है
यह पंक्ति है अंतिम जो लिखी हैं तुमपर
कि ताकत नहीं हैं|
आत्म तो मेरा सड़ ही रहा था
अब धुंए में शरीर मेरा मर रहा है|

जो बीतें यह दस दिन
जो सोचो तुम, और आयो यहाँ कही तुम मेरे बिन
तो समझना इसे, जो घुटन है यहाँ वह दर्द की नहीं है
यह रूह है मेरी
जो रुक्सत हो गयी थी
और अब यहाँ पर सड़ रही है

Friday, September 02, 2011

ab shanti hai

शांत सी थीं वो
शांत हि थीं
न माथे पर शिकन न शंका ज़रा सी
शंका हो भी कहाँ अब यहाँ
वो बी अब उनके साथ जा चुकी है
सालों सुना
अब देखा तो जाना
जाना न चाहो पर जाना कभी है
जो जियो अभी तुम तो समझो की जिया
जो शिकन है अभी, तो शिकन हि जाना साथ सही है
पता था मुझे वो जायेंगी अभी, अब
न पता यह है की में जाऊंगा कभी कब
जब हमेशा तुम्हे यहाँ रहना नहीं है
जो शिकन है अभी, तो शिकन हि जाना साथ सही है
क्या दिया अभी तब ?
क्या किया अभी तक?
जो शांत हि तुम चली जातीं
मुझे अभी ये बातें चाहे भाती नहीं हैं
पर त्योरियां हटाने से शिकन यूँ जाती नहीं है

मुझे ख़ुशी है इसकी
की यहाँ वो नहीं
वो तो शायद उनके साथ जा चुकी है|